Tuesday, May 10, 2016

सोमवार व्रत कथा

सोमवार व्रत कथा 
विधि : सोमवार का व्रत साधारणतया  दिन के तीसरे पहर तक होता है व्रत में फलाहार का कोई विशेष नियम नहीं है ,परन्तु यह आवश्यक है की केवल एक ही बार भोजन किया जाये । सोमवार का व्रत शिवजी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है । इस दिन शिव पार्वती का पूजन किया जाता है। सोमवार का व्रत सामान्यतया तीन प्रकार का होता है -१. साधारण प्रति सोमवार ,२.सौम्य प्रदोष ,३.सोलह सोमवार । इन तीनों व्रतों की विधि एक जैसी ही है । शिव पूजन के लिए अक्षत अर्थात चावल (जो कि समूचे अर्थात टूटे हुए न हों ) चढ़ाना चाहिए । शिव के मस्तक का चन्द्रमा शीतलता का प्रतीक है । इस प्रकार शिव के पूजन से शान्ति की अनुभूति होती है । शिव पूजन के पश्चात कथा सुननी चाहिए ।
                                                                १. साधारण प्रति सोमवार
कथा : एक बहुत धनवान साहूकार था ,जिसके घर में धन आदि किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी । परन्तु उसको एक ही दुःख था कि उसके कोई पुत्र नही था । वह इसी चिंता में रात - दिन रहता था । वह पुत्र की कामना के लिये प्रति सोमवार को शिव जी का व्रत किया करता था तथा  सायंकाल  को शिव मंदिर में दीपक भी जलाया करता था । उसके इस भक्तिभाव को देखकर एक समय श्री पार्वती जी ने शिव महाराज से कहा कि '' हे महाराज!यह साहुकार आपका अनन्य भक्त है और सदैव आपका व्रत और पूजन बड़ी श्रद्धा से करता है । आपको इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिये । "
शिव  शङ्कर ने कहा कि "हे पार्वती !यह संसार कर्मक्षेत्र है । जैसे किसान खेत में बीज बोता है वैसा ही फल काटता है । उसी तरह इस संसार में प्राणी जैसे कर्म करता है वैसे ही फल भोगता है ।" पार्वती  ने अत्यंत आग्रह से कहा "महाराज!जब यह आपका अनन्य भक्त है और इसको अगर किसी प्रकार का दुःख है तो उसको अवश्य दूर करना चाहिए क्योंकि आप सदैव अपने भक्तों पर दयालु होते हैं और उनके दुःखों को दूर करते हैं यदि आप ऐसा नही करेंगे तो मनुष्य क्यों आपकी सेवा व्रत किया करेंगे । ''
पार्वती  का ऐसा आग्रह देख शिवजी महाराज कहने  लगे  -''हे पार्वती ! इसके कोई पुत्र नहीं है इसी चिंता में यह अत्यन्त दुःखी रहता है । इसके भाग्य पुत्र न होने पर भी मैं इसको पुत्र की प्राप्ति का वर देता हूँ । परन्तु यह पुत्र केवल बारह वर्ष तक जीवित रहेगा । इसके पश्चात वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा । इससे अधिक मैं इसके लिए और कुछ नहीं कर सकता । '' यह सब बातें साहुकार सुना रहा था । इससे उसको न कुछ  प्रसन्नता हुई और  कुछ दुःख हुआ । वह पहले की भाँति ही शिव पूजन और व्रत करता रहा । कुछ काल व्यतीत हो जाने पर साहुकार की स्त्री  गर्भवती हुई और दसवें महीने उसके गर्भ से अति सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई । साहुकार के घर में ख़ुशी मनाई गई किन्तु केवल बारह वर्ष तक की आयु जान साहुकार ने अधिक प्रसन्नता प्रकट नहीं की और ना ही किसी को यह  भेद बतलाया । जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हो गया तो बालक की  माता ने  विवाह आदि के लिये कहा तब वह साहुकार कहने लगा की मैं  अभी इसका विवाह नहिं करूंगा ,अभी इसे काशी पढ़ने के लिए भेजूंगा । साहुकार ने अपने साले अर्थात बालक के मामा को बुलाकर बहुत सारा धन देकर    कि तुम इस बालक को काशी पढ़ने के लिए ले जाओ और रास्ते में जिस स्थान पर भी जाओ यज्ञ कराते और ब्राह्मणों  को भोजन कराते जाना।
    वह दोनों मामा भांजे यज्ञ करते और ब्राह्मणों  को भोजन  कराते जा रहे थे । में उनको एक शहर पड़ा । उस शहर में  राजा की कन्या का विवाह था और दूसरे राजा का लड़का जो बरात लेकर आया था वह एक आँख से  काना था । उसके पिता को इस बात की बड़ी चिंता थी की वर को देख कहीं  पिता विवाह में किसी प्रकार की अड़चन न  पैदा कर दें । इस कारण जब उसने अति सुन्दर सेठ के लडके को देखा तो उसने मन में विचार किया कि क्यों न दरवाजे के समय इस लडके से वर का काम चलाया जाये । ऐसा विचार कर उस लड़के और मामा से बात की तो वे राजी हो गए । फिर उस लड़के को वर के कपडे पहना तथा घोड़ी पर चढ़ा दरवाजे पर ले गए और सब कार्य प्रसन्नता से पूर्ण हो गया ।  फिर लडके के पिता ने सोचा की विवाह कार्य भी इसी लडके से करा दिया जाये तो क्या बुराई है ??ऐसा विचार कर लडके और उसके मामा से कहा की यदि फेरों और कन्यादान का कार्य भी आप करा दें तो आपकी बड़ी कृपा होगी ?मैं इसके बदले में आपको बहुत सारा धन दूँगा तो उन्होंने स्वीकार कर लिया । विवाह कार्य बहुत अच्छी तरह से संपन्न हो गया । परन्तु जिस समय लड़का जाने लगा उसने राजकुमारी के चुनरी के पल्ले पर लिखा दिया कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है परन्तु जिस राजकुमार के साथ तुझे विदा करेंगे वह एक आँख से काना है । मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूँ । लडके के जाने के पश्चात जब राजकुमारी ने ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया और कहा कि यह मेरा पति नहीं है । मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ है। वह तो काशी जी पढ़ने गए हैं । राजकुमारी के माता पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं  किया और बरात वापस चली गई । उधर सेठ का लड़का और उसका मामा काशी पहुँच गए । वहाँ जाकर उन्होंने यज्ञ करना और लड़के ने पढ़ना आरम्भ कर दिया था । जब लड़के की आयु बारह वर्ष हो गई उस दिन उन्होंने यज्ञ रचा था की लड़के ने अपने मामा से आकर कहा कि  -'' मामा जी आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है।'' मामा ने कहा -''अंदर जाकर आराम करो ।''लड़का अंदर जाकर सो गया । थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गए । जब उसके मामा ने आकर देखा तो वह मुर्दा पड़ा है तो उसको बड़ा दुःख हुआ और उसने सोचा कि अगर मैं अभी रोना पीटना मचा दूँगा  तो मेरा यज्ञ का कार्य अधूरा रह जायेगा । अतः उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के जाने के पश्चात रोना पीटना आरम्भ कर दिया । संयोगवश उसी समय शिव और पार्वती उधर से जा रहे थे । जब उन्होंने जोर -जोर से रोने की आवाज सुनी तो पार्वती जी कहने लगीं -''महाराज  कोई दुःखी रो रहा है । इसके कष्ट दूर कीजिये ।'' जब शिव -पार्वती ने पास जाकर देखा तो वाहन एक लड़का मुर्दा पड़ा था । पार्वती कहने लगीं कि  महाराज यह तो उसी सेठ का लड़का है जो आपके वरदान से पैदा हुआ था । शिवजी कहने लगे -''हे पार्वती !इसकी आयु इतनी ही थी सो यह भोग चुका। ''तब पार्वती ने कहा '' हे महाराज ! कृपा करके इस बालक को और आयु दो अन्यथा इसके माता -पिता तड़प-तड़प मर जायेंगे । '' पार्वती  के बार- बार आग्रह करने पर शिवजी ने उसको  दिया और शिव -पार्वती की कृपा से लड़का जीवित हो गया । शिव -पार्वती कैलाश चले गए ।
वह लड़का और उसके मां उसी प्रकार यज्ञ करते तथा ब्राह्मणों  को भोजन कराते अपने घर की और चल पड़े । रास्ते में उसी शहर में आए जहां उसका विवाह हुआ था । वहां पर आकर उन्होंने यज्ञ आरम्भ किया तो लडके के ससुर  ने पहचान लिया और अपने महल में ले जाकर उसकी बड़ी खातिर की । साथ ही बहुत सारे दास- दसियों  सहित आदर के  साथ लड़की और जमाई को विदा किया । जब वे अपने शहर के निकट आए तो मामा ने कहा की मैं पहले घर जाकर खबर कर आता हूँ । जब लडके का मामा घर पहुँचा तो उसने देखा कि लड़के के माता  पिता घर की छत पर बैठे थे और उन्होंने यह प्रण कर रखा था कि यदि हमारा पुत्र सकुशल घर आ गया तो हम राजी ख़ुशी नीचे आ जायेंगे  अन्यथा छत से गिर कर अपने प्राण दे देंगे । इतने में उसके मामा ने आकर यह समाचार दिया कि आपका पुत्र आ गया है ,तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ। तब उसके मामा ने शपथपूर्वक कहा कि आपका पुत्र अपनी स्त्री के साथ बहुत सारा धन तथा दस दसियों  को लेकर आया है तो सेठ ने आनंद के साथ उसका स्वागत किया  और बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगे । इसी प्रकार से जो कोई भी सोमवार के व्रत को धारण करता है अथवा इस कथा को  सुनता है   मनोकामनाएं पूर्ण  हैं ।
                                                                  ॐ नमः शिवाय 















Wednesday, April 6, 2016

श्रीदुर्गासप्तशती shriDurgashaptasati,

श्रीदुर्गासप्तशती shriDurgashaptasati,

श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनाम्स्त्रोतम्
शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व कमलानने |
यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गाप्रीता भवेत् सती ||
ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचिनी |
आर्या दुर्गा जया चाद्यात्रिनेत्रा शूलधारिणी ||
पिनाकधारिणी चित्रा   चण्डघण्टा   महातपाः |
मनो बुद्धिरहङ्कारा चित्तरूपा चिता   चितिः ||
सर्वमन्त्रमयी    सत्ता   सत्यानन्दस्वरुपिणी |
अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः ||
शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा |
सर्वविद्या    दक्षकन्या       दक्षाविनाशिनी ||
अपर्णानेकवर्णा   च   पाटला   पाटलावती |
पट्टाम्बरपरिधाना     कलमञ्जीररञ्जिनी ||
अमेयविक्रमा  क्रूरा   सुन्दरी     सुरसुन्दरी |
वनदुर्गा  च  मातङ्गी  मतङ्गमुनिपूजिता ||
 ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा |
चामुण्डा  चैव   वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः ||
विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा |
बहुला          बहुलप्रेमा          सर्ववाहनवाहना  ||
निशुम्भशुम्भहननी             महिषासुरमर्दिनी |
मधुकैटभहन्त्री       च        चण्डमुण्डविनाशिनी ||
सर्वासुरविनाशा          च       सर्वदानवघातिनी |
सर्वशास्त्रमयी सत्या   सर्वास्त्रधारिणी    तथा ||
अनेकशस्त्रहस्ता  च  अनेकास्त्रस्य   धारिणी |
कुमारी चैककन्या  च   कैशोरी  युवती   यतिः ||
अप्रौढा    चैव    प्रौढा    च   वृद्धमाता    बलप्रदा |
महोदरी     मुक्तकेशी      घोररूपा     महाबला ||
अग्निज्वाला    रौद्रमुखी    कालरात्रितपस्विनी |
नारायणी    भद्रकाली   विष्णुमाया    जलोदरी ||
शिवदूती    कराली    च    अनन्ता   परमेश्वरी |
कात्यायिनी च  सावित्री   प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी ||
य    इदं    प्रपठेन्नित्यं     दुर्गानामशताष्टकम् |
नासाध्यं  विद्यते  देवि  त्रिषु लोकेषु   पार्वति ||
धनं   धान्यं  सुतं    जायां   हयं  हस्तिनमेव  च |
चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम् ||
कुमारीं पूजयित्वा  तु  ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम् |
पूजयेत्   परया   भक्त्या   पठेन्नामशताष्टकं ||
तस्य   सिद्धिर्भवेद्   देवि    सर्वेः     सुरवरैरपि |
राजानो दासतां  यान्ति  राज्यश्रियमवाप्नुयात् ||
गोरोचनालक्तककुङ्कुमेन
                                 सिन्दूरकर्पूरमधुत्रयेण   ||
विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो
                               भवेत् सदा धारयते पुरारिः ||
भौमावास्यानिशामग्रे    चन्द्रे   शतभिषां    गते|
विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां  पदम् ||
इति श्रीविश्वसारतन्त्रेदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं  समाप्तम् ||
जय माता दी
नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनायें |
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी |
तृतीयं चन्द्रघण्तेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ||
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च |
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ||
नवमं सिद्धिदात्री च नव दुर्गा प्रकीर्तिताः ||
मां अम्बे की आरती
ओ अम्बे तू है जगदम्बे काली , जय दुर्गे खप्पर वाली , तेरे ही गुण गायें भारती ,
ओ मइया हम सब उतारें तेरी आरती | अम्बे..........
तेरे जगत के भक्त जनों पर भीड. पडी है भारी मां , भीड. पडी है भारी ,
दानव दल पर टूट पडो मां -2 करके सिंह सवारी ,
सौ - सौ सिंहों से तू बलशाली ,अष्ट भुजाओं वाली , दुष्टों को तू ही ललकारती |
ओ मइया हम सब उतारें तेरी आरती | अम्बे..........
नहीं मांगते धन और दौलत ना चान्दी ना सोना मां , ना चान्दी ना सोना,
हम तो मांगें मां तेरे मन में -2 एक छोटा सा कोना ,
सबकी बिगडी बनाने वाली ,लाज बचाने वाली ,सतियों के सत को संवारती |
ओ मइया हम सब उतारें तेरी आरती | अम्बे..........
मां बेटे का है इस जग में बडा ही निर्मल नाता मां , बडा ही निर्मल नाता ,
पूत कापूत सुने हैं पर ना -2 माता सुने कुमाता ,
सबपे करुणा बरसाने वाली , अमृत बरसाने वाली ,नइया भंवर से उबारती |
ओ मइया हम सब उतारें तेरी आरती | अम्बे..........
चरण - शरण में खडे हुए हैं ले पूजा की थाली मां , ले पूजा की थाली,
मानवाञ्छित फल देदो माता -2 जाये ना कोई खाली ,
सबके कष्ट मिटाने वाली , झोली भर देने वाली ,दुखियों के दुःख को निवारती |
ओ मइया हम सब उतारें तेरी आरती | अम्बे..........
बोलो अम्बे मात की जय |

Saturday, February 27, 2016

शिव अर्चना,एवं मंत्र


ॐ नमः शिवाय
शिव गायत्री मन्त्र-
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ||
*****
श्री  पञ्चाक्षरस्तोत्रम्  -
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय , भस्मगराय महेश्वराय |
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय , तस्मै 'न'कराय नमः शिवाय ||
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय , नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय |
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय , तस्मै 'न'कराय नमः शिवाय ||
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द - सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय |
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय  , तस्मै 'न'कराय नमः शिवाय ||
वशिष्ठकम्भोद्भवगौतमार्य - मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय |
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय  , तस्मै 'न'कराय नमः शिवाय ||
यक्षस्वरूपाय जटाधराय , पिनाकहस्ताय सनातनाय |
दिव्याय देवाय दिगम्बराय , तस्मै 'न'कराय नमः शिवाय || 
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसंनिधौ |
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ||
***** 
महामृत्युञ्जय मन्त्रं -
अघोरेभ्यो,अघोरेभ्यो,घोरघोरतरेभ्यः | सर्वतः शर्वसर्वेभ्यो |
नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्यः मृत्युञ्जय,त्र्यम्बकं ,सदाशिव नमस्ते ||
ॐ ह्नौं जूं सः भूर्भुवः स्वः 
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं 
उर्वारुकमिवबन्धनान्मृत्योर्मोमोक्क्षीय माऽमृतात् 
ॐस्वः ॐ भुवः भूः ॐ सः जूं ह्नौं ॐ |
आकाशे तारका लिङ्गं ,पाताले हाटकेश्वरम् |
मृत्युलोके महाकालेश्वरम् त्रिये लिङ्गं नमस्तुते ||
*****
ॐकार बिन्दु संयुक्तं , नित्यम् , ध्यायते जायते |
काम , दम , मोक्षो संयम  ,ॐकाराय नमो नमः ||
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् |
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवै नमः    
*****
बारह   ज्योतिर्लिङ्ग
सोमनाथ सौराष्ट्र में ,काशी मे विश्वेश |
महाकाल उज्जैन मे,शिवाले मे घृष्मेश ||
भीमशङ्कर डाकिनी  , सेतु बन्ध रामेश |
त्रयम्बकगोतमी  तीर पर,दारुक  बन नागेश ||
मल्लिकार्जुन श्री शैल पर ,हिमगिरि पर केदार |
चिता भोमो अस्थान पै वैद्यनाथ भवहार ||
 ओंकार ममलेश्वर,रेवा तट दोई नाम|
द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग को सदा करुं  प्रणाम ||
श्रद्धा सहित जो ध्यावहि  निशदिन मे दोई बार |
सर्व पाप से मुक्त हो पावें सिद्धि अपार |
*****
शिवरुद्राष्टकम्  
नमामीशमीशान  निर्वाणरूपं |
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं ||
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं |
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं ||
अर्थात् मोक्षस्वरुप,विभु ,व्यापक ब्रह्म ओर् वेदस्वरूप,ईशानदिशा
के ईश्वरतथा सबके स्वामी ,शिव शङ्कर मैं आपको नमस्कार करता हूं |
निजस्वरूप में स्थित ( अर्थात मर्यादारहित ) ,मायिक गुणों से रहित ,
भेदरहित ,इच्छा रहित, चेतन आकाशस्वरूप  एवं आकाश को ही वस्त्ररूप
 में धारण करने वाले दिगंबर (अथवा आकाश को भी आच्छादित करने
  वाले ) आपको मैं भजता हूं |
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं |
गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशं ||
करालं महाकालकालं कृपालं |
गुणागार संसारपारं नतोऽहं ||
अर्थात्  निराकार,ओंकार के मूल,तुरीय (तीनों गुणों ) से अतीत ,वाणी
,ज्ञान ओर इन्द्रियों से परे कैलासपती,विकराल,महाकाल के भी काल
कृपालु गुणों के धाम संसार से परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूं |
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं |
मनोभूत कोटि प्रभा श्रीशरीरं ||
स्फ़ुरन्मौलिकल्लोलिनी चारु गंगा |
लसद्भालबालेन्द कण्ठे भुजङ्गा ||
अर्थात् जो हिमाचल के सामान गौर वर्ण तथा गम्भीर है ,जिनके शरीर में करोड़ों
 कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है ,जिनके मस्तक पर सुन्दर गंगाजी विराजमान
 हैं ,जिनके ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा और गले में सर्प शुशोभित है ।
चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालम् |
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं ||
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं |
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ||
अर्थात् जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं ,सुन्दर भृकुटी और विशाल नेत्र हैं ,जो
प्रसन्नमुख , नीलकण्ठ और दयालु हैं ,सिंहचर्म का वस्त्र  धारण किये मुण्डमाला
 पहने हैं उन सबके प्यारे और सबके नाथ (कल्याण  करने  वाले ) श्री शंकरजी
को मैं भजता हूँ ।
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं|
अखण्डं अजं  भानुकोटिप्रकाशं ||
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं |
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं ||
अर्थात्  प्रचण्ड (रुद्ररूप),श्रेष्ठ , तपस्वी ,परमेश्वर ,अखण्ड ,अजन्मा,करोड़ों सूर्यों के
सामान प्रकाश वाले ,तीनों प्रकार के शूलों  (दुःखों ) को निर्मूल करने वाले ,
हाथ में त्रिशूलधारण किये ,भाव (प्रेम) के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के 
पति श्रीशङ्कर को मैं भजता हूँ । 
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी |
सदा सच्चिदानन्ददाता पुरारी ||
चिदानन्द संदोह मोहापहारी |
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ||
अर्थात्  कलाओं से पर,कल्याणस्वरूप ,कल्पका अन्त (प्रलय ) करने वाले,सज्जनों को
सदाआनंद देने वाले , त्रिपुरा के शत्रु ,सच्चिदानन्दघन ,मोह को हरने वाले ,मन
को मथ डालने वाले कामदेव के शत्रु ,हे प्रभु प्रसन्न होइए ,प्रसन्न होइए ।
न यावद्  उमानाथ पादारविन्दं |
भजमतीह लोके परा वा नराणां ||
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं |
प्रसीद प्रभो सर्वभूतादिवासं ||
 अर्थात् पार्वतीजी  के पति जब तक मनुष्य आपके चरणों को नहीं भजते ,तब तक
उन्हें ना तो इहलोक और परलोक में सुख शान्ति मिलती है और ना ही उनके पापों
 का नाश होता है ।अतः  हे समस्त जीवों के अंदर (ह्रदय में )निवास करने वाले प्रभु
 । प्रसन्न होइए ।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां |
नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं ||
जराजन्म दुः खौघ -तातप्यमानं |
प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शंभो || 
अर्थात् मैं न तो योग जनता हूँ ,न जप और न पूजा ही । हे शम्भो ,मै तो सदा -सर्वदा
 आपको ही नमस्कार करता हूँ । हे प्रभो,बुढ़ापा तथा जन्म - मृत्यु के दुःख समूहों से
 जलते हुए मुझ दुखी की दुःख से रक्षा कीजिये । हे ईश्वर ,हे शम्भो मैं
आपको नमस्कार करता हूँ ।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये |
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ||
अर्थात् भगवान् रुद्र की स्तुति का यह अष्टक उन शङ्कर की  तुष्टि (प्रसन्नता )
के लिये ब्राह्मण द्वारा कहा गया है | जो मनुष्य इसे भक्तिपूर्वक  पढते हैं , उन
पर भगवान शम्भु प्रसन्न होते हैं |







Thursday, November 26, 2015

Ganesh Aarti.गणेश भगवान की कथा, आरती तथा पूजन विधि |

ॐ सिद्धि बुद्धिसहिताय,श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।
गणेश वन्दना एवं पूजन विधि 
गणेश चतुर्थी 
भाद्रपद माह की शुक्लपक्ष की चतुर्थी गणेश चतुर्थी के नाम से प्रसिद्ध  है। इस दिन स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर गणेश भगवान का पूजन अर्चन करना चाहिए । मोदक,लड्डू तथा हरे दूर्वा श्रद्धापूर्वक ईश्वर को अर्पित करने चाहिए  ।महाप्रभु के निम्नोक्त नामों का प्रतिदिन तीन बार पाठ करने से शुभकार्यों में कोई विघ्न नहीं आता । -
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् |
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुः कामार्थसिद्धये ||
प्रथमं वक्रतुण्डं च ,एकदन्तं द्वितीयकम् |
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षम् ,गजवक्त्रं चतुर्थकम् ||
लंबोदरं पञ्चमं च ,षष्ठं विकटमेव च |
सप्तमं विघ्नराजं च ,धूमवर्णं तथाष्टकम् ||
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्|
एकादशं गणपतिम्  ,द्वादशं तु गजाननम् ||
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्घ्यं यः पठेन्नरः |
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम् ||

 गणेश महामंत्र -ॐ गं गणपतये नमः ।
ॐ एकदन्तायविद्म्हे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ।
ॐ वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
अर्थात टेढ़ी सूंड वाले ,विशालकाय शरीरवाले ,करोड़ों सूर्यों के प्रकाशतुल्य प्रकाशवाले गणेश भगवान् मेरे सभी कार्यों को विघ्नरहित करें ।

गजाननं भूतगणाधिसेवितम् ,कपित्थ-जम्बू-फल-चारु-भक्षणम् |
उमासुतं शोक-विनाश-कारकम् ,नमामि विघ्नेश्वर-पाद-पङ्कजम् ||
अर्थात भूतगणों के द्वारा सेवित ,कैथ और जामुन के फलों के सार को खाने वाले,(भक्तों के)शोक नाश का कारण बनाने वाले पार्वती के पुत्र ,विघ्नों के स्वामी गजानन के चरणकमलों को मैं नमस्कार करता हूँ ।
श्री गणेश भगवान् की कथा 
एक बार भगवान शङ्कर स्नान करने के लिए भोगवती नामक स्थान पर गए । उनके चले जाने के पश्चात पार्वती ने अपने तन के मैल से एक पुतला बनाया । जिसका नाम उन्होंने गणेश रखा पार्वती ने गणेश को द्वार पर एक मुद्गल लेकर बैठाया और कहा कि जब तक मैं स्नान करूँ तब तक किसी भी पुरुष को अंदर मत आने देना ।
भोगवती पर स्नान करने के बाद जब भगवान् शङ्कर आये तो गणेश ने उन्हें द्वार पर ही रोक दिया । क्रुद्ध होकर भगवान् शङ्कर ने श्रीगणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया और अंदर चले गए । पार्वती ने समझा की भोजन में विलम्ब होने के कारण शिव शङ्कर नाराज हैं । उन्होंने उसी समय दो थालियों में भोजन परोसकर शिव शङ्कर को बुलाया । शिव शंकर ने दो थाल देखकर पूछा -दूसरा किसके लिए है । पार्वतीजी बोली-दूसरा थाल पुत्र गणेश के लिए है ,जो बाहर पहरा दे रहा है । यह सुनकर शिवशङ्कर ने कहा , '' मैंने तो उसका सिर काट दिया । ''यह सुनकर पार्वती बहुत दुःखी हुई और पुत्र गणेश को पुनः जीवित करने की प्रार्थना करने लगी । शिवशंकर ने तुरंत ही पैदा हुए हाथी के बच्चे का सिर बालक के धड़ से जोड़ दिया । तब पार्वती  ने प्रसन्नता पूर्वक  पति और पुत्र को भोजन कराकर स्वयं भोजन किया । यह घटना भाद्रपद शुक्ल`चतुर्थी को हुई थी इसी लिए इसका नाम गणेश चतुर्थी पड़ा ।
श्री गणेश चालीसा 
दोहा -एकदन्त शुभ गजवदन,विघ्न विनाशक नाम ।
श्री गणेश सिद्धि सदन , गणनायक सुखधाम ॥
मंगल मूर्ति महान श्री ,ऋद्धि सिद्धि दातार ।
सब देवन में आपको ,प्रथम पूज्य अधिकार ॥
चौपाई 
वक्रतुंड श्री सिद्धि विनायक । जय गणेश सुख सम्पति दायक ॥
गिरिजा नंदन सब गुण  सागर । भक्त जनों के भाग्य उजागर ॥
श्री गणेश गणपति सुखदाता । सम्पति ,सुत सौभाग्य प्रदाता  ॥
राम नाम में दृढ़ विश्वासा । श्रीमन नारायण प्रिय दासा ॥
मोदक प्रिय मूषक है वाहन । स्मरण मात्र सब विघ्न नशावन ॥
 लम्बोदर पीताम्बर    धारी । भाल त्रिपुन्ड्र सुशोभित भारी ॥
मुक्ता पुष्प माल गल शोभित । महाकाय भक्तन मन मोहित ॥
सुखकर्ता ,दुःखहर्ता देवा । सदा करे संतन जन सेवा ॥
शरणागत रक्षक गणनायक । भक्तजनों के सदा सहायक ॥
सकल शास्त्र सब विद्या ज्ञाता । धर्म प्रवक्ता जग विख्याता ॥
'महाभारत ' श्री व्यास बनाया । तब लेखन हित  तुम्हे बुलाया ॥
शुभ कार्यों में सब नर नारी । प्रथम वंदना करें तुम्हारी ॥
मिट जातीं बाधाएँ सारी  । तुम हो सकल सिद्धि अधिकारी ॥
श्री गणेश के जो गुण गावें । उनके कार्य सफल हो जावे ॥
जो श्रद्धा से करे प्रार्थना  । उनकी होती सिद्ध कामना ॥
श्री गणेश के जो गुण गाते ।वे जन सकल पदारथ पाते ॥
जय गणेश जय गणपति देवा । तीन लोक करते तब सेवा ॥
मास  भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी । श्री गणनायक प्रकट जयन्ती ॥
श्रद्धा से सब भक्त मनाते । दिव्यचरित महिमा यश गाते ॥
श्री गणेश निज भक्त सहायक । विघ्न विनाशक मंगल दायक ॥
रणथम्भोर दुर्ग गणनायक । महाराष्ट्र  के अष्ट विनायक ॥
वेद पुराण शास्त्र यश गावे । श्री गणेश सब  प्रथम मनावें॥
विघ्नेश्वर श्री सुरप्रिय स्वामी  ।भक्त करें जाया गान स्मरामि ॥
सर्वाभीष्ट सिद्धि फल दायक । मोदक प्रिया गणपति गणनायक ॥
भालचंद्र गजमुख सुखकारी । पहले पूजा होत  तुम्हारी ॥
भक्त जनों को शुभ वरदायक। श्री गणेश जय वरद विनायक॥
श्री गणेश महिमा अति भारी ।इससे परिचित सब नर नारी ॥
गणपति की महिमा सब गाते ।रिद्धि सिद्धि यश वैभव पाते ॥
संकट में जो गणपति ध्यावें । उनके सर्व कष्ट कट जावें ॥
ऋद्धि सिद्धि बुद्धि बल दायक ।सदा सर्वदा विजय प्रदायक ॥
वृन्दावन के सिद्धि विनायक । श्री गणेश गणपति गणनायक ॥
विघ्न विनाशक नाम तुम्हारा । करो सिद्ध सब कार्य हमारा ॥
सब पर कृपा सदा प्रभु करना । दुःख दारिद्र्य शोक सब हरना॥
श्री मंगल विग्रह सुखकारी ।विनय करो स्वीकार हमारी ॥
पत्र पुष्प फल जल लेकर मै । पूजा करे सदा हम घर में ॥
जो यह पठन करे सौ बारा  । उन पर गणपति कृपा अपारा ॥
एक पाठ भी जो नित करते । उनकी सब विपदाएँ हरते ॥
रोग शोक बंधन कट जाते । सुख सम्पति संतति यश पाते ॥
शुभ मंगल सुन्दर फल पावे । श्री गणेश चालीसा गावे ॥
सफल गजानन करे कामना । भक्त गदाधर रचित प्रार्थना॥
दोहा - श्री गणेश गणपति प्रभो ! गणनायक गणराज।
 करो सफल मम कामना ,विघ्नेश्वर महाराज ॥

श्री गणेश भगवान की आरती 
जय -गणेश  ,जय -गणेश , जय -गणेश  देवा।
माता जाकी पार्वती ,पिता महादेवा ॥ जय -गणेश  ......
पान-चढ़े ,फूल चढ़े और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें  सेवा ॥ जय -गणेश  ......
एक दन्त दयावन्त,चार भुजा धारी ।
मस्तक सिंदूर  सोहे। मूषक की सवारी ॥ जय -गणेश  .....
अंधन को आँख देत ,कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत , निर्धन को माया ॥ जय -गणेश  ....
सूर्य श्याम शरण आएं सफल कीजै सेवा॥ जय -गणेश। ..
दीनन की लाज राखो ,बंधु सुतवारी ।
कामना को पूर्ण करो ,जग बलिहारी ॥ जय -गणेश  ...
  जय -गणेश  ,जय -गणेश , जय -गणेश  देवा ॥
॥ बोलो गणेश भगवान की जय ॥
 ॥ चिंतामन गणेश की जय ॥